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अभी ठंड से नहीं निजात

अभी ठंड से नहीं निजात

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इस बार नववर्ष की शुरुआत ऐसी कडक़ती ठंड में हुई थी जोकि इस महीने के आखिर तक भी खत्म होती नजर नहीं आ रही है। जनवरी महीने की शुरुआत में ही कोहरा, ठंडी हवाएं और नीचे की ओर भागते पारे ने जनजीवन अस्तव्यस्त कर दिया है, लेकिन अब पिछले तीन-चार दिनों से लगातार हो रही बारिश भी जैसे मुश्किलों का सबब बन चुकी है। हालांकि इस बार गेहूं की फसल अच्छी होने की उम्मीद बंध गई है, क्योंकि कृषि वैज्ञानिक मानते हैं कि कोहरा और लगातार हो रही मंद बारिश गेहूं की फसल के लिए कारगर साबित होगी। खैर, फसल अपनी जगह है, लेकिन जनजीवन अपनी जगह। आजकल लोगों को यह कहते सुना जा सकता है कि उनका काम में मन नहीं लग रहा, क्योंकि ठंड इतनी है और अब ऊपर से बारिश। मनोवैज्ञानिकों की राय है कि धूप न निकलने से अवसाद की स्थिति बनती है और लोग निराश महसूस करने लगते हैं। अगर लगातार ऐसा हो तो यह स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है। बावजूद इसके अनेक लोग ऐसे भी हैं, जोकि पहाड़ों पर बर्फबारी का आनंद लेने के लिए निकल पड़े हैं और कडक़ती ठंड का अहसास ले रहे हैं।  

    इस समय पूरे उत्तर भारत में चिलचिलाती ठंड का प्रभाव है। मौसम विभाग का आकलन है कि अगले कुछ दिन और ठंड से छुटकारा नहीं मिलने वाला। यह ठंड पिछले कई वर्षों में सर्वाधिक है। माना जा रहा है कि इस वर्ष ऐसे कई हालात बने हैं, जिन्होंने इस ठंड के लिए माहौल बनाया, इनमें पड़ोसी देश पाकिस्तान से बिहार तक फैले बादलों का डेरा एक वजह है, वहीं ला नीना ने भी असर दिखाया है। वहीं पश्चिमी विक्षोभ के कारण हो रही बारिश व बर्फबारी भी एक कारण है। मौसम विज्ञानियों के अनुसार प्रशांत महासागर में ला नीना की वजह से पारा तेजी से नीचे आया है, विज्ञानी बताते हैं कि ला नीना के प्रभाव के कारण उत्तर पश्चिम में मौसम ठंडा और दक्षिण पूर्व दिशा में गर्म रहता है। इसके अलावा गंगा के उतराई वाले क्षेत्रों में बादलों के छाए रहने से कोहरे जैसी स्थिति बन गई है, जिससे तापमान गिर रहा है। मौसम विभाग का आकलन है कि हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, चंडीगढ़, दिल्ली के क्षेत्रों में अभी और बारिश की संभावना है, इससे ठंड में और इजाफा होगा। वहीं हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेश का उत्तरी इलाका, बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में घना कोहरा उत्पन्न हो सकता है।

इस दौरान जम्मू-कश्मीर का इलाका भी भारी ठंड की चपेट में रहेगा। कश्मीर के गुलमर्ग तथा अन्य स्थानों में बर्फबारी हो रही है और यहां अधिकतर जगहों पर न्यूनतम तापमान जमाव बिंदु से ऊपर पहुंच गया है।

  अगर उत्तर भारत की बात करें तो यहां जनवरी में बारिश का पिछले 32 साल का रिकॉर्ड टूट गया है। इलाके में शनिवार रात 69.8 मिमी से अधिक बारिश दर्ज की गई है, मौसम विभाग का कहना है कि जनवरी 1989 में ऐसी बारिश दर्ज की गई थी, उस समय 79.7 मिमी बारिश हुई थी और उसके बाद यह सबसे अधिक है। इससे पहले शनिवार को दिन भर पूरे उत्तर भारत में बारिश की छींटाकशी जारी रही। दिल्ली और आसपास के इलाकों में इस माह सबसे ज्यादा ठिठुरन वाले दिन दर्ज हुए हैं। कई स्टेशनों पर दिन के समय तापमान सात से 10 दिनों तक काफी कम रहा। इससे पहले सबसे लंबे समय तक ठिठुरन वाले दिनों की स्थिति जनवरी 2015 में 11 से 13 दिनों तक रही थी। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पिछले एक सप्ताह में नरेला, जाफरपुर, आया नगर पालम और रिज सबसे ठंडे स्टेशन रहे हैं। इन सभी जगह ज्यादातर दिन गंभीर श्रेणी का ठंडा दिन रहा। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार इस साल 15 से 18 जनवरी तक दिन में सबसे ज्यादा ठंड पड़ी। दरअसल, किसी इलाके में अगर लगातार दो दिनों तक न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से कम हो और अधिकतम तापमान भी सामान्य से 4.5 से लेकर 6.4 डिग्री तक कम हो तो इसे ठंडे दिन की संज्ञा दी जाती है। वहीं अगर न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से कम हो और अधिकतम तापमान में 6.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा गिरावट दर्ज हो तो इसे गंभीर ठंड वाला दिन कहा जाता है।

    मौसम का यह बिगड़ा रूप तब है, जब उत्तर भारत के दो प्रमुख राज्यों उत्तर प्रदेश और पंजाब में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। इस बार कोरोना प्रोटोकॉल की वजह से पहले ही चुनाव आयोग रैलियों, जुलूसों पर प्रतिबंध लगा चुका है। लेकिन अब भारी ठंड और बारिश की वजह से घर-घर जाकर टोलियों में जनसंपर्क पर भी लगाम गई है, ऐसे में राजनीतिक दलों के पास सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर प्रचार करने के अलावा कोई जरिया नहीं रह गया है। वैसे मौजूदा परिस्थिति यह विचार करने को बाध्य कर रही हैं कि क्या वास्तव में बड़ी-बड़ी रैलियां, जुलूस निकाल कर चुनाव कराना जरूरी है। आज हर हाथ में मोबाइल फोन है, अब सरकार आधार से वोट को जोड़ने की तैयारी में है। तब चुनाव के नाम पर एक से तीन महीने तक चलने वाला शोर-शराबा अनुचित जान पड़ता है। कोरोना ने आज के व्यक्ति की जीवन शैली ही बदल दी है, तब चुनावों के नए प्रारूप पर भी विचार होना चाहिए। बीते वर्ष पंजाब में निकाय चुनाव के दौरान भारी भीड़ जुटी थी, इसके बाद मार्च और अप्रैल में राज्य में कोरोना ने जैसा कहर ढाया था, वह भुलाया नहीं जा सकता। इसलिए कोरोना से बचाव के लिहाज से और शोर शराबे एवं भीड़ मुक्त चुनाव कराए जाने जरूरी हैं। भीड़ मुक्त चुनाव में इस बार ठंड भी अपना योगदान दे रही है।